भारत के बड़े लोकप्रिय प्रधानमंत्री हुए अटल बिहारी वाजपेयी. सत्ता में आने से पहले देश को उनसे जरुरत से ज्यादा उम्मीदें थीं. अपने कार्यकाल में उन्होंने एक बड़ा बढ़िया बयान दिया था- "पाकिस्तान हमारे सब्र का इम्तिहान न ले, सब्र का प्याला भर गया तो अंजाम अच्छा न होगा....". इस बयान में अपने देश की लाचारी साफ़-साफ़ झलकती है. वो दिन था और आज का दिन है भारत का सब्र का प्याला आज तक नहीं भरा है. देश की आज़ादी से लेकर आज तक कितनी ही सरकारें आई और चली गयीं. लेकिन उनके सब्र का बांध भाकड़ा-नागल बाँध से भी मजबूत था. कभी नहीं टूटा. गाल पर तमाचे पर तमाचे खाए, आम जनता मरती रही, पिसती रही, लेकिन कभी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. कही वोट बैंक आड़े आया तो कभी ऊपरी दवाब.
छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने अब ऐसा थप्पड़ मारा है जो किसी भी गैरतमंद देश की सरकार की नींद तोड़ने के लिए काफी है. भारत सरकार के चेहरे पर इस थप्पड़ की पांचों उँगलियों के निशान साफ-साफ छप गए हैं. लेकिन हमको पूरा विश्वास है कि इससे सरकार रवैये पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. देश के गृह मंत्री रटा-रटाया बयान देंगे, जिसमें रीढ़ विहीन सरकार की लाचारी नज़र आएगी. आखिर हो भी क्यों न, जो लोग मरे हैं उनमें सरकारी कर्मचारी भले ही हों लेकिन कोई सरकार में बैठे दिग्गजों का नाते रिश्ते वाला नहीं है न. आम लोग मरे हैं, वो तो मरते ही रहते हैं. उनके मरने से सरकार के काम काज पर कोई फर्क नहीं पड़ता. ७६ मरे हैं, हमारे पास तो सवा सौ करोड़ हैं.
इससे भी गैरत की बात ये है कि देश का एक तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग नक्सलियों, माओवादियों जैसे लोगों के साथ बातचीत का पक्षधर है, उनको सही ठहरा रहा है और उनको मुख्या धरा में शामिल करने की बात करता है. इन बुद्धिजीविओं में तमाम बड़े मीडिया संस्थान, बड़े बड़े विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरान, दिग्गज लीडरान शामिल हैं. हमें यकीन है कि छत्तीसगढ़ में इतने बड़े हत्याकांड के बाद भी इन लोगों का समर्थन जारी रहेगा.
आखिर कब तक हम नम्र रुख अख्तियार करे रहेंगे. ऐसे संगठनों और उनके समर्थकों दोनों के खिलाफ अगर कठोर कदम नहीं उठाया गया तो हम इसी तरह के नरसंहार के साक्षी बनते रहेंगे. कम से कम हमें दूसरे देशों से ही कुछ सबक लेना चाहिए. हाल ही में हुए मॉस्को हमले में रूस के प्रधानमंत्री व्लादिमीर पुतिन जो बयान दिया उसके बाद आतंकी अपने बिलों में घुस गए होंगे. पुतिन ने कड़ा बयान देते हुए कहा कि- एक-एक आतंकी को गटर में से खींच- खींच कर नष्ट किया जायेगा. अमेरिका ने ९/११ हमले के बाद दुश्मन को उसी के देश में जाकर नष्ट किया और आज भी वहां कब्ज़ा जमाये है. हम तो संसद पर हमला करवाकर भी चुप रहे, होटल ताज में नाक कटवाकर पाकिस्तान के साथ केवल कागज़ी खेल खेल रहे हैं.
हिंसा के खिलाफ इस तरह का नम्र रुख अपनाना न तो शांति प्रियता है, न अहिंसात्मक उपदेश, ये तो भारत सरकार की केवल कायरता है और डरपोकपन है...... A BLOODY SHAME
बढिया आलेख।
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